खुखरायण - मनमोहन सिंह से विराट कोहली
यदि आपका पटेल नगर, कीर्ति नगर और विशाल एंक्लेव आना-जाना रहता है, तब आपने इन सब जगहों में खुखरायण भवन देखे होंगे। ये कोई बहुत बड़े तो नहीं हैं, इधर कुछ देऱ खड़े होंगे तो एकत्र लोग एक-दूसरे को कोहली जी, आनंद जी, सूरी जी, साहनी जी, सब्बरवाल जी कह कर संबोधित कर रहे होंगे। उधर यमुनापार के शाहदरा, कृष्णा नगर, प्रीत विहार, विवेक विहार में खुखरायण
भवन तो नहीं हैं, पर खुखरायण समाज में कमाल का भाईचारा देखने को मिलताहै।
खुखरायण परिवारों की इन सभी क्षेत्रों में भाऱी तादाद है। ये सभी देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से विस्थापित होकर दिल्ली आए थे। कह सकते हैं कि दिल्ली में 1947 से पहले 200 खुखरायण समाज के लोग नहीं होंगे। यानी बंटवारे ने अन्य शहरों की तरह से दिल्ली की आबादी का चरित्र भी बदल कर रख दिया।
खुशवंत सिंह कहते थे कि “खुखरायण पंजाबी खत्रियों का एक जाति समूह है, इसमें कोहली भी शामिल हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर भी कोहली ही हैं। इनके अलावा इसमें साहनी, घई, चंडोक, चड्ढा, आनंद, सब्बरवाल, सूरी, भसीन व ऐसी अन्य जातियां व उपजातियां जो एक-दूसरे से वैवाहिक रिश्ते कायम करने को प्राथमिकता देती हैं।”
महत्वपूर्ण ये भी है कि खुखरायण समाज में हिन्दू और सिख दोनों हैं।
हिन्दी-सिख दोनों खुखरायण
खालसा कॉलेज की मैनेजिंग कमेटी के चेयरमेन और पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के मीडिया सलाहकार श्री त्रिलोचन सिंह कहते हैं- “ हिन्दू-सिख एक-दूसरे से इस तरह से घुले- मिले हुए हैं, जैसे दूध में चीनी। खुखरायण समाज के हिन्दुओं के लिए गुरुनानक देव जी आराध्य हैं। इसी तरह से हरेक सिख खुखरायण शिव जी, हनुमान जी और दुर्गा की पूजा करता है। इनमें किसी तरह की कोई दूरी नहीं है। ”
राजधानी की खुखरायण बिरादरी के वरिष्ठ सदस्य श्री ब्रज मोहन सेठी कहते हैं कि हमारे समाज की राजधानी में कुल आबादी पांच-छह लाख से कम नहीं होगी। सब एक-दूसरे से जुड़े हैं। ये पाकिस्तान के भेरा, रावलपिंडी, झेलम जैसे स्थानों से दिल्ली आए थे। ये लगभग सभी बिजनेस करते हैं। नौकरी करने वाले गिनती के होंगे। इनके दिल्ली में बने सभी भवनों में डिस्पेंसरी भी चलती है। पहाड़गंज के उदासीन आश्रम में एक खुखरायण धर्मशाला भी है। ये आराम बाग के पास है।
खुखरायण शब्द की उत्पत्ति
खुखरायण शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? इस सवाल का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाता। यमुनापार में खुखरायण समाज के सक्रिय सदस्य बलबीर सिंह विवेक विहार कहते हैं कि हमने 20-25 साल पहले खुखरायण परिवारों को जोड़ना शुरू किया। सबको खुखरायण शब्द जोड़ता था। अब हर साल होली मिलन-दिवाली मिलन पर बड़े आयोजनों के अलावा छोटे-मोटे कार्यक्रम होते रहते हैं। अब जब सबने पैसा कमा लिया है तो यहां पर सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय हो गए हैं। दिल्ली आने के कई सालों तक अपने को जमाने में ही लग गए थे। एक बार इधर बिजनेस में सफल होने के बाद खुखरायण समाज समाजिक रूप से भी सक्रिय हुआ। बलबीर सिंह विवेक विहार दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आला पदाधिकारी भी रहे हैं।
दिल्ली में खुखरायण समाज को एक साथ जोड़ने में दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद केदार नाथ साहनी,तिलक मार्ग पर सागर अपार्टमेंट्स बनाने वाले वाले कारोबारी सागर सूरी, सरदार गुलाब सिंह सेठी और रैनबैक्सी फार्मा के फाउंडर चेयरमेन भाई मोहन सिंह खास थे। भाई मोहन सिंह का सरनेम चड्ढा थे। ये अपने समाज के लोगों के सुख-दुख में खड़े होते थे।
खुखरायण मुंडा विराट कोहली
लेखक गुरुप्रीत सिंह आनंद कहते हैं कि दिल्ली के खुखरायण भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली पर फख्र करते हैं। विराट कोहली हमारे समाज की शान है। वो लगातार बुलंदियों को छूता ही चला जा रहा है। इनके अपने नायकों में हिन्दी के वरिष्ठ लेखक भीष्म साहनी और डॉ नरेन्द्र कोहली भी हैं। दोनों लंबे समय तक
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प़ढ़ाते रहे। दोनों ने कालजयी लेखन किया है। भीष्म साहनी तो जीवनभर खुखरायण समाज के गढ़ पटेल नगर में ही रहे। भीष्म साहनी के अग्रज और बेहतरीन एक्टर बलराज साहनी ने खुखरायण समाज पर एक किताब भी लिखी थी।
श्री त्रिलोचन सिंह स्पष्ट करते हैं कि हम अपनी अपनी बिरादरी की बात तो करते हैं, पर हम जातिवादी नहीं है। हमारे समाज के लड़के-लड़कियां अन्य जातियों में विवाह करते हैं। खुखरायण समाज पर लक्ष्मी के साथ सरस्वती की भी कृपा है। ये पढ़ने लिखने पर खूब जोर देते हैं।
इस बीच, कुछ खुखरायण अमिताभ बच्चन को भी अपने समाज का अंग ही मानते हैं क्योंकि उनकी मां तेजी जी आनंद परिवार से थीं। इसी तरह से मेनका गांधी को भी खुखरायण बिरादरी अपना ही समझती है। मेनका गांधी का मायका भी खुखरायण था।
कहते हैं, खुखरायण समाज के कुछ सदस्यों ने बाबा फरीद के प्रभाव के चलते इस्लाम भी स्वीकार भी कर लिया था। जाहिर है कि वे 1947 के बाद भारत तो नहीं आए। पर वे पाकिस्तान में भी अपनी एक अलग पहचान को कायम किए हुए हैं। इनमें पाकिस्तान के फ्राइडे टाइम्स के एडिटर नज्म सेठी भी हैं। वे अपने को खुखरायण बताते हैं।