कूल एंड कलरफुल स्ट्रीट फूड
अमिताभ
स्ट्रीट फूड भी कम रंगीन नहीं हैं। स्वाद के मल्टी कलर से सराबोर स्ट्रीट फूड के कहीं-कहीं रंग भी देखने लायक हैं और चखने लायक तो खैर हैं ही। कूल हरे रंग का घीया लौंज है, तो चटक गोल्डन जलेबा और मल्टी कलर चुस्की भी। आज ऐसे ही रंगारंग स्ट्रीट फूड चखा रहे हैं -
1. मल्टी कलर चुस्की/शिकारा लवली चुस्की
@इंडिया गेट: रोज, खस, ऑरेंज वगैरह मल्टी कलर और रंगारंग फ्लेवर्स की चुस्कियां चूसने का मज़ा इंडिया गेट से बेहतर और कहां मिलेगा। इंडिया गेट के नजदीक मान सिंह रोड पर मस्जिद के बगल में फुटपाथ पर ‘शिकारा लवली चुस्की’ के जगमग स्टॉल पर हर रात साढ़े 7 से डेढ़ बजे तक रौनक गुलजार रहती है। कोई काला खट्टा का रसिया है, तो कोई खट्टा-मीठा का। गुलाबी, हरा और संतरी रंग के फ्लेवर्स रोज, खस और ऑरेंज भी हाजिर है। बगैर रंग की इलायची फ्लेवर की चुस्की का स्वाद हू-ब-हू शिकंजी की माफिक है। काला खट्टा और खट्टा मीठा चुस्कियों पर नींबू और मसाले का इतना जोरदार रंग चढ़ता है कि यही सबसे ज्यादा पसंद की जाती है। काला नमक, जीरा वगैरह से बना मसाला भी खास है। काला खट्टा फ्लेवर में शुगर फ्री भी सर्व की जाती है। बड़ी खासियत है कि बर्फ आर ओ फिल्टर पानी से खुद ही जमाते हैं। ओनर पप्पू चौधरी ने अस्सी के दशक के शुरुआती कई साल के दौरान मुम्बई के चौपाटी पर काला खट्टा चुस्की क्या खाई? उन्होंने 1986 में इंडिया गेट पर अपने भाई असद खान सलाही के साथ मिलजुल कर दिल्लीवालों को खिलानी शुरू कर दी। पहले नाम रखा ‘शाही गोल्डन चुस्की’, लेकिन जल्द ही शिकारा की ठंडी बयार से प्रेरित हो कर ‘शिकारा लवली चुस्की’ हो गया। उनकी पत्नी हुसना खान भी हाथ बंटाती है। पप्पू चौधरी अक्सर यूं गा-गा कर बुलाते भी हैं- ‘आई चुस्की.. ये लवली चुस्की.. एक खट्टी-मीठी चुस्की, दिल बहार चुस्की एंड फाइन चुस्की..पहले स्कूल में खाई थी, अब इंडिया गेट पर खाई..।’
2. तरबूज का शरबत/ नवाब जूस सेंटर
@मटिया महल: गुलाबी नारियल बर्फी और गुलाबी बंगाली रसगुल्ले तो पूरा साल खाते हैं, लेकिन ठंडा गुलाबी तरबूज, रूह आफजा और दूध का मस्त शरबत आजकल गर्मियों की नायाब सौगात है। मिलता ज़रा कम ही है। पिलाने का श्रेय जाता है जामा मस्जिद के सामने मटिया महल मेन बाज़ार में ‘असलम चिकन’ की दुकान के नजदीक रेहड़ी पर। छतरी ताने रेहड़ी पर लिखा है ‘नवाब कुरैशी तरबूज का जूस’ और स्पेशल है तरबूज, रूहआफजा और दूध का शरबत। शरबत खास है, इसलिए नाम भी खास है। सामने बनाते हैं- पतीले में अमूल दूध, चाश्नी और रूहआफजा को बर्फ की सिल्ली से ठंडा करते हैं। फिर तरबूज को बारीक-बारीक काट कर डाल देते हैं। धीरे-धीरे शरबत ठंडा होता है और तरबूज का सत दूध में घुल-घुलकर तासीर और ठंडी करता रहता है। पीते-पीते मुंह में तरबूज के टुकड़े आते हैं। तरबूज के आम जूसों से हटकर, प्यार मुहब्बत मज़ा पेश करने का श्रेय दो भाइयों नवाब कुरैशी और मुहम्मद शहादत को जाता है। 2007 से रोजाना दोपहर 12 से रात 12 बजे तक प्यार मुहब्बत मज़ा के दीवाने उमड़ते रहते हैं। सीजनल है, सो सारा साल तो नहीं, मार्च से अक्टूबर के बीच ही बनता-बिकता है।
3. घीया लौज/श्याम स्वीट्स
@चावड़ी बाज़ार: गर्मियों के कूल कलर हरे रंग की घीया लौंज खाई है क्या? नहीं, तो जरूर खाने चलिए ‘श्याम स्वीट्स’ पर। यहां घीया बर्फी को घीया लौंज कहा जाता है। दूध, इलायची, गुलाबी जल, मावा और कद्दूकस घीया को कढ़ाही में 3 घंटे तक काढ़-काढ़ कर ट्रेª में जमाते हैं। फिर चांदी का वरक लगा, पीसों में काट दिया जाता है। इनके रंग को देखकर ही दिल खुश हो जाता है। हल्का मीठा है। मुंह में घीया और खोया तैरते हैं। टेस्टी इतनी है कि घीया न खाने वाले भी इसे चाव से खाने लगते हैं। एक और खास हरी-हरी मिठाई है-स्पेशल पान पेठा। देखने में पान की तरह लगता है। पेठे को छील कर चीनी में पकाते हैं, फिर चाश्नी में डुबो देते हैं। इसमें गुलकंद, शहद, गुलाब पंखुडी, सौंफ, ड्राई फ्रूट्स वगैरह की स्टफिंग का रोल बना कर पेश करते हैं। घीया लौंज का जलवा मार्च से अक्टूबर तक ही है। बाकी सारा साल मटर कचौड़ी, बेड़मी-आलू और नागौरी हलवा समेत मीठी-नमकीन हर आइटम की तारीफ है। मटर कचौड़ी से ही मशहूर ‘श्याम स्वीट्स’ हलवाई शॉप 1910 से चावड़ी बाज़ार के चौक बरशाह बुल्ला पर धूम मचाए हुए है। शुरुआत की आनन्दी मल ने, फिर उनके बेटे बाबू राम, पोते मुकुट बिहारी लाल, पड़पोते केदार नाथ से होते हुए आज पड़पड़ पोते संजय और अजय अग्रवाल के साथ छठी पीढ़ी के भरत अग्रवाल अपने पुश्तैनी स्वाद को कायम रखने में जुटे हैं। हर रोज सुबह 9 से रात 9 बजे तक कभी भी खाने जा सकते हैं। अगर भीड़भाड़ में जाने से कतराते हैं, तो दरियागंज की दयानंद मार्ग के नजदीक मद्रास हाउस स्थित ‘श्याम स्वीट्स’ का रुख का सकते हैं।