इस कुएं के नाम पर धौला कुआं का नाम पड़ा
वीरेंद्र वर्मा, नई दिल्ली।
जिस कुएं के नाम पर धौला कुआं का नाम पड़ा है, वह आज भी है। यह जितना पुराना और गहरा है, उतनी ही पुरानी और गहरी उसकी कहानी है। धौला का अर्थ सफेद होता है। इस कुएंसे सफेद पानी निकलता था, इसलिए इस कुएं का नाम धौला कुआं पड़ा। धौला कुआं पेट्रोल पंप और मौजूदा मेट्रो स्टेशन के बीच से एक रास्ता डीडीए के झील पार्क की ओर जाता है। जैसे ही डीडीए पार्क में एंट्री करते हैं, आपके बाएं हाथ की ओर पत्थरों सेबना एक कुआं नजर आएगा। कुएं पर आज भी पुरानी दीवारें हैं जिन पर से रस्सी के सहारे पानी निकाला जाता था। डीडीए ने सुरक्षा के लिहाज से अब इस कुएं पर लोहे का जाल डाल दिया है ताकि किसी अप्रिय घटना से बचा जा सके। कुआं पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़कर बनाया गया है। इसकीगहराई का अनुमान लगाना मुश्किल है। लोग कहते हैं कि कुएं में अपने आप प्राकृतिक तरीके से पानी आता है। धौला कुआं के आसपास कई तरह क ा निर्माण होने के कारण अब इसकुएं का पानी सूख गया है। कुएं की तली में कुछ इस तरह के पत्थर हैं जिनसे कुएं का पानी सफेद हो जाता था। पहले स्वतंत्रता संग्राम का गवाह बात 1857 की है। कई पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि यह कुआं पहले स्वतंत्रता संग्राम का भी गवाह बना था। इसी कुएं पर देश को आजाद कराने के लिए वीर सेनानियों ने शपथ ली थी।कहा जाता है कि हरियाणा, यूपी और दिल्ली से आए हजारों सेनानियों ने इस कुएं में नमक की बोरियां डाल दी थीं और कुएं के चारों ओर खड़े होकर शपथ ली थी कि मर जाएंगे, लेकिनअंग्रेजों के सामने झुकेंगे नहीं। 360 गांवों की पंचायत की ओर से उस समय अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को भी संदेश भेजा गया था कि वे फिर से उन्हें देश का सुल्तानबनाएंगे। गांवों में आज भी लोटे में नमक डालने की परंपरा है। इससे व्यक्ति फिर समाज से बाहर नहीं जाता। इसीलिए कुएं में नमक डालकर शपथ ली गई थी। मुगल बादशाह भी आते थे। कहते हैं कि मुगल बादशाह भी जब पालम या राजस्थान और हरियाणा की ओर जाते थे, तो कुछ पल इसी कुएं के पास आराम करते थे। हालांकि यह कहींनहीं दिया गया है कि यह कुआं कितना पुराना है, लेकिन माना जाता है कि यह कुआं 300 साल से ज्यादा पुराना होगा। कुएं के अंदर पत्थर इस तरह लगाए गए हैं कि इसका पानी रिस नसके। खेती में भी काम आता था पानी लोग बताते हैं कि धौला कुआं के आसपास कुछ इलाकों में चने और गेहूं की खेती होती थी। बैलों को चलाकर चमड़े की बाल्टियों से कुएं का पानी निकाला जाता था और खेतों कीसिंचाई की जाती थी। अब यहां डीडीए का झील पार्क है। डीडीए के कर्मचारी बताते हैं कि करीब 7 साल पहले तक कुएं में मोटर लगाकर पानी निकाला जाता था। इस पानी का इस्तेमाल पार्क में किया जाताथा। पिछले 35 साल से वे यहां तैनात हैं। कुछ साल पहले यह कुआं सूख गया है। कुएं से सफेद पानी आता था।