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आर्ट ऑफ़ टॉकिंग
दो कान हैं कि ज्यादा सुनें, एक मुहँ है कि कम बोलें ।
जीवन में आगे न बढ़ पाने का सबसे बड़ा कारण सुनने की आदत का न होना है, भले वो व्यापार हो, आफिस हो, समाज हो या परिवार । घर में आपस में लड़ाई का कारण भी केवल ज्यादा बोलने की आदत ही है, यदि बोलना कम और सुनना ज्यादा हो तो पति-पत्नी में भी सम्बन्ध मधुर ही बने रहते हैं। नवधा भक्ति में पहले श्रवण आता है, फिर कीर्तन। कि पहले सुनें फिर बोलें, लेकिन हम उलटा करने लग जाते हैं । अपने को देखें कि कहीं हम भी तो बिना टॉपिक के बात तो नहीं करते रहते, क्योंकि कहा गया है ‘बोलो चालो, बको मत’।
दुनिया में सबसे ज्यादा चीज जो दी जाती है, वो है सलाह। और जो सबसे कम ली जाती है वो है सलाह । हमारे दो कान इसलिए हैं कि ज्यादा सुनें । जो भी हमारे सामने अपनी बात लेकर आएं या हम किसी से पास जाएं, उस समय सामने वाले की बात को ज्यादा से ज्यादा सुनें । हमारे कान, सुनने वाले हों। जब कोई हम से बात करता है, तब हम बीच में ही उसकी बात काट देते हैं जिस कारण सामने वाले का फ्लो टूट जाता है। जबकि भगवान ने मुहँ एक ही दिया है कि व्यक्ति कम बोले। लेकिन हम सुनते कम हैं और बोलते ज्यादा हैं । सोचो, यदि दो मुहँ दिए होते, तब हमारी क्या हालत होती ।
जैसे बोलना एक कला है, ऐसे ही सुनना भी एक कला है, ये कला धैर्य से आती है । मन का उतावला व बिखरापन किसी की बात को एकाग्रता के साथ सुनने नहीं देता। बातचीत के दौरान व्यक्ति समझता है कि यदि मैं बीच में अपनी बात नहीं रखूंगा, तो सामने वाला मुझे मुर्ख समझेगा, जबकि जब हम बीच में बोलते है, तब मुर्ख कहलाते हैं। ये बीच में बोलने की आदत हमारे अहंकार से आती है जिसमें हम अपने को सही या बड़ा बताने लगते हैं।
वैसे तो जो हम सुनना चाहते है, बस वही सुनते हैं, बाकि सब बातें छोड़ देते हैं। अपनी कीर्ति को हम बार-बार सुनना चाहते हैं और जो कीर्ति करता है उसको अपना हितेषी समझते हैं लेकिन जो निंदा करता है उसको दुश्मन मान लेते हैं, जबकि यदि अपने में सुधार चाहिए तो निंदा करने वाला असलियत में आपकी कमियों को बता रहा है, जिसको हम दूरकर आगे बढ़ सकते हैं।
जब कोई व्यक्ति आपके सामने है तब पहले उसकी बात सुनने की कोशिश करें, नाकि अपनी बात पहले कहें । हो सकता है उसकी बात आपसे ज्यादा ज़रूरी हो । बात करते समय आपके शब्दों से अहंकार नहीं झलकना चाहिए, अन्यथा हम अपने सम्बन्ध सामने वाले से कमजोर कर लेते हैं । जब कोई व्यक्ति आप से मिलता है तब आप अपना सारा प्यार अपने हाव-भाव और बातचीत से उस पर उडेल दें, उस समय मैं,मेरा और अपने वालों की बात न करके उसकी बात सुनें, उसकी बात धैर्य से सुन लेना ही उससे प्यार करना होता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति हमसे बहुत थोड़ी देर के लिए मिलता है, लेकिन छोटी मुलाक़ात वह लम्बे समय तक याद रखने वाला है।
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